रामनवमी पर 351 वर्षों में प्रथम बार नंदलला से रामलला तक 1,00,001 मठड़ी महाप्रसाद महायात्रा

अयोध्या सहित यात्रा मार्ग में वितरित होगा प्रभु श्रीनाथजी का प्रसाद

नाथद्वारा @RajsamandTimes। पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्रीनाथजी की हवेली के पीठाधीश्वर गोस्वामी तिलकायत राकेश महाराज की आज्ञा एवं विशाल बावा की प्रेरणा से श्रीजी प्रभु के नाथद्वारा पधारने के 351वर्षो के इतिहास में प्रथम बार रामनवमी के शुभ अवसर पर श्रीजी द्वार से राम द्वार तक महाप्रसाद की यात्रा होगी जिससे श्रीजी प्रभु के महाप्रसाद को ग्रहण करने का लाभ लाखों वैष्णव जन ले सकेंगे। मंदिर पीआरओ गिरीश व्यास ने जानकारी देकर बताया कि रामनवमी पर श्रीनाथजी प्रभु की हवेली से अयोध्या तक एक लाख एक मठड़ी का महाप्रसाद वितरित किया जाएगा। श्रीजी प्रभु के महाप्रसाद की महायात्रा में सभी नगर वासी एवं वैष्णव जन महाप्रसाद यात्रा की सेवा में भागीदार हो सकेंगे। केसरी गणगौर के शुभ दिवस पर 14 अप्रेल प्रातः8 बजे मोती महल से विशाल बावा महाप्रसाद की यात्रा का शुभारंभ करेंगे। महाप्रसाद की यात्रा नाथद्वारा से भीलवाड़ा- जयपुर – मथुरा -जतीपुरा लखनऊ होती हुई रामलला के द्वार अयोध्या पहुंचेगी व मार्ग में भी प्रभु के महाप्रसाद का वितरण होगा।

“हमारे मदन गोपाल है,श्री राम” – विशाल बावा 

विशाल बावा ने कहा कि “हमारे मदन गोपाल है,श्री राम”। ‘पूर्ण पुरुषोत्तम’ से ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ तक महाप्रसाद की महा यात्रा का यह शुभ मंगल अवसर सेंकड़ों वर्षों के बाद आया है और इसी भावना से श्रीजी प्रभु भी रामनवमी के अवसर पर राम मय हो जाते हैं ।
“आज अयोध्या मंगलाचार, मंगल कलश माल अरु तोरण, बंदीजन गावत सब द्वार” भारतवर्ष की यह धरा यूं तो किसी देह के विभिन्न अंगों की भांति भाषा क्षेत्र के आधार पर पृथक है किंतु इस संपूर्ण देह की धमनियों में जो श्वास की तरह बसते हैं  वही हैं प्रभु श्री राम एवं वे ही हैं हमारे प्रभु श्री गोवर्धन नाथ। कहने को प्रभु श्री राम त्रेता युग एवं प्रभु श्री कृष्ण द्वापर युग में विद्यमान थे किंतु दोनों ही हर जीव में चारित्रिक गुणों के रूप में आज भी विद्यमान है, जहां मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा और धर्म परायणता संपूर्ण विश्व के आचरण का मूल है तो वही पूर्ण पुरुषोत्तम श्री गोवर्धन नाथ जी की सीख धर्म का मूल है,जहां एक तरफ रामेश्वरम का विशाल सागर प्रभु श्री राम के दृढ़ता एवं समर्पण का चिन्ह है तो वही द्वारका का समुद्र एवं श्री गोवर्धन गिरिराज जी पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीजी प्रभु का अपने भक्तों के ऊपर कृपा का साकार रूप है जो पथभ्रष्ट जीव को पुनः धर्म के मार्ग पर लाकर धर्म स्थापना का चिन्ह है । अंत में यदि कुछ समान है तो वह है बाल स्वरूप रामलला एवं नंदलला की निश्छलता जिसके मूल में निहित है परिशुद्ध प्रेम एवं समर्पण। अतः यदि कुछ सत्य है तो यही कि “हमारे मदन गोपाल ही है श्री राम” ।

पुष्टिमार्ग में श्री हरि के अवतारों के प्राकट्य उत्सवों की विशेष मान्यता है, वह वामन द्वादशी हो या नरसिंह चतुर्दशी या फिर श्री रामनवमी प्रभु को इस अवसर पर विशेष श्रृंगार धराया जाता है, किंतु रामनवमी पर निकुंज नायक प्रभु का स्वरूप ऐसा प्रतीत होता है मानो नन्दनंदन ही स्वयं दशरथ नंदन के रूप में दर्शन दें रहें हो। प्रभु के इस विशेष श्रृंगार एवं उत्सव की परंपरा 351 वर्षों से निरंतर चली आ रही है । इतिहास में पहली बार यह अद्भुत संयोग होगा, जब नंदालय से प्रभु श्रीनाथजी का महाप्रसाद नंदलला से रामलला के द्वार तक यात्रा करेगा तथा यात्रा के मार्ग में आने वाले जीवों का महाप्रसाद के रूप में श्रीजी प्रभु की कृपा जीवों का उद्धार करेंगी। पुष्टिमार्ग में श्री कृष्ण और श्री राम को एक ही स्वरूप माना है जिसमें लेश मात्र भी संशय नहीं है, यह एक प्रसंग में भी स्पष्ट है, ‘जब तुलसी हुए नंदलाल के’ यह प्रसंग प्रभु श्री गोवर्धन नाथ जी के ब्रज में बिराजने के समय का है जब एक बार प्रभु के प्रिय अष्टसखाओं में श्री नंददास जी के भ्राता एवं श्री रामचरितमानस के रचयिता श्री तुलसीदास जी से नंददास जी की भेंट हुई और उन्होंने तुलसीदास जी से श्रीजी प्रभु के दर्शन करने के लिए कहा किंतु तुलसीदास जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह केवल अपने राघवेंद्र श्री राम के सम्मुख ही हाथ जोड़ते हैं एवं उन्हीं का दर्शन करते हैं तब नंददास जी द्वारा उन्हें विश्वास दिलाया कि श्रीनाथजी प्रभु ही श्री राम है और दोनों एक ही स्वरुप है तब श्री तुलसीदास जी ब्रज में श्रीजी प्रभु के दर्शन करने हेतु आते हैं, किंतु तुलसीदास जी नंददास जी के समक्ष यह शर्त भी रखते हैं कि मैं तब मानूंगा जब श्रीजी प्रभु श्री राम के समान धनुष बाण भी धारण कर उन्हें दर्शन दें, तब श्री नंददास जी प्रभु से विनती करते हुए कहते हैं कि “कहा कहो छवि आज ही भले बने हो नाथ, तुलसी मस्तक तब नमे जब धनुष बाण लेहू हाथ”! नंददास जी की विनती सुन श्रीजी प्रभु तभी बाबा तुलसी को प्रभु के उस स्वरूप के दर्शन देते हैं जिसमें प्रभु ने धनुष बाण धारण किए हुए थे यह दृश्य देख बाबा तुलसी प्रभु को साष्टांग प्रणाम करते हैं और इस प्रकार तुलसी को नंदलाल में अपने रामलला प्राप्त होते हैं ! और यह प्रसंग स्पष्ट करता है की पुष्टि मार्ग में श्री हरि के सभी अवतारों का समावेश श्रीजी प्रभु में है और श्रीजी प्रभु ही श्री कृष्ण और श्री राम के एक ही रूप हे!
इन्हीं भावना से तिलकायत श्री की आज्ञा एवं विशाल बावा की प्रेरणा से रामनवमी के शुभ अवसर पर प्रथम बार श्रीजी प्रभु का महाप्रसाद ‘एक लाख एक’ “मठड़ी” के महा प्रसाद के रूप में यात्रा के रूप में श्रीजी प्रभु के द्वार से श्री राम प्रभु के द्वार तक पहुंचेगा एवं रामनवमी के शुभ अवसर पर अयोध्या में वैष्णव जन को वितरित होगा ।