वात्सल्य ग्राम : भाव सम्बन्धों का पहला तीर्थ जहां होगा धर्म का वैज्ञानिक परीक्षण

वात्सल्य ग्राम, वृंदावन। जिंदगी की पाठशाला का एक ऐसा रंगमंच, जहां भावनात्मक रिश्तों की बुनियाद को हकीकत के सम्बन्धों पर भारी देखा जा सकता है। वहां देखा जा सकता है जाति-धर्म के बन्धनों से मुक्त उन नन्हीं कोंपलों के अति परिष्कृत स्वरूप को जिसमें राष्ट्रवाद और सनातनी परम्पराओं का अनूठा संगम समाहित है। जो गुरुकुलीय परम्पराओं को साधने के साथ-साथ नवीन युग की वेज्ञानिक सोच को भी आत्मसात करता है।

यहां हम बात कर रहें है दीदी मां साध्वी ऋतम्भराजी के उस अनूठे प्रकल्प ‘वात्सल्य ग्राम’ की। जहां रक्त सम्बन्धों की लालिमा से कई ज्यादा प्रगाढ़ नजर आती है भाव सम्बन्धों की भंगिमा। यह एक ऐसा प्रकल्प है जो अनाथालय और वृद्धाश्रम की कुत्सित सोच को सिरे से समाप्त करने की क्षमता रखता है। “रघुनाथ और विश्वनाथ के देश में कोई अनाथ कैसे हो सकता है….” प्रकल्प की पूरी बुनियाद ही इस एक पंक्ति के भाव में सारगर्भित है। जिसे दीदी मां ने समय-समय पर सार्थक भी किया है।

दुनियां में मेरे जैसे कई असंख्य अभागे हैं जिनके सिर से मां की छाया और पिता का साया कब का उठ चुका है। जिन्हें इस जन्म में वापस पा लेना असम्भव था लेकिन दीदी मां ने हम अभागों के भाग्य पर स्नेह का ऐसा चंदन लगाया कि उसकी महक पूरे चमन को सुहासित कर गई। उनकी छवि में ही मात-पिता के दर्शन हो जाते हैं। यही तो है गुरु महिमा की पराकाष्ठा, जहां बिन कहे ही सबकुछ सुन लिया जाता है। जिनके स्मरण मात्र से आंखे सजल हो उठती है। मन में स्नेह और श्रद्धा के तरंग तो ऐसे उठते हैं की गगनचुंबी लहरे भी छोटी लगती है। जिस निर्भीकता और बेबाक शैली से अपनी भावनाओं को सरलता के साथ जनमानस में आत्मसात कराने का दैवीय गुण दीदी मां में है, उसी तरह प्रेम, वात्सल्य और अनाम रिश्तों को भाव सम्बन्धों में गूंथकर सुगन्धित माला में पिरोने की अद्भुत क्षमता भी उनमें वरदान के रूप में समाहित है।

आने वाले दिनों में एक ओर प्रकल्प मूर्तरूप लेने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। वात्सल्य ग्राम में ‘मां सर्व मंगला’ का एक ऐसा मंदिर निर्माणाधीन है जहां सनातन धर्म और अध्यात्म की मान्यताओं के वैज्ञानिक परीक्षण के साथ ही वास्तु और ज्योतिष्य का समागम भी होगा। तो आइए हम भी संकल्प के साथ इस प्रकल्प के साक्षी बने। संकल्प ऐसा लें कि विकल्प की कोई गुंजाइश ही न रहे। आमजन में अपने विचारों को सम्प्रेषित करना एक बात है लेकिन उसके मर्म में उतर कर धरातल पर प्रस्तुतिकरण देते हुए समाज को दिशा देना महत्वपूर्ण बात है। दीदी मां की कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं, जो कहा वही किया। मां सरस्वती का ऐसा अद्भुत आशीर्वाद हमारे और हमारी संस्कृति के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

✍️ मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द(राज.