उनकी याद आती हैं बस वो ही नहीं आते…!!

मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द

माता पिता को समर्पित आलेख : ✍️

पुराने घर की टूटी-फूटी दीवारों पर लाख रंग रोगन करवादों लेकिन मा-बाप की उंगलियों के निशां कभी मिटते थोड़े ही है। हमारी यादों में बसी उनकी याद के साथ उनकी परछाई भी अंतिम सांस तक वहीं घूमती रहती है जहाँ हमारा बचपन बीता था। बाद उनके, चाहे महलों में आशियां बना लो लेकिन सपने तो उन्हीं चारदीवारी के ही आते हैं जिस में बचपन की अठखेलियाँ और मां-बाप की लोरियां गुंजा करती थी।

ये वक्त-वक्त की बात है। जब कुछ नहीं होता है तो माँ-बाप होते है और जब कुछ पा जाते हैं तो वो कहीं दूर निकल जाते हैं। उनके बिना मन पर क्या गुजरती है, ये तो वो ही समझ सकता है जिसने उनसे बेइंतहा मोहब्बत की हो। हम तो कोरे इंसान है, ईश्वर और एश्वर्य का सम्बंध शायद ही कभी समझ पाएंगे !!

ये यादें है उनकी, जो रात के अंधेरे में भी चुपके से आ घेरती है। वो समय नहीं देखती की आंखों में नींद है या रात्रि का तीसरा प्रहर। वो जब आती है तो नींद ही नहीं आती, रात भी लंबी हो जाती है। बैठूं तो आंख की नमी गाल को और लेटू तो कान को गीला कर देती है। उनसे बिछड़े बरसों हो गए लेकिन आज भी यही लगता जैसे पल की बात हो। उम्र के इस दौर में भी बचपन की बातें और शरारतें याद आती है कि कैसे कुछ होने के बाद भी उनका इत्मीनान से समझाना की ऐसे नहीं वैसे, वैसे नहीं ऐसे। कहाँ से लाते थे वो, अनन्त सी गहराई वाली बातें। मन में आज भी कौतूहल उठता है कि आखिर माँ बनी किस मिट्टी की होती है। मन में टीस लिए आज भी सोचता हूँ वो कहाँ चले गए जिनकी बूढ़ी आंखों और हाथों की बेजान हुई उंगलियों में भी आशीर्वाद का अथाह समंदर था।

मां-बाप का साथ छूटते ही व्यक्ति अकेला हो जाता है। बाद चाहे खुद का कुनबा कितना ही क्यों न विशाल हो जाए लेकिन सीने में दबा दर्द कोई नहीं समझ सकता क्योंकि हम भी उम्र के उस दौर में आ जाते हैं जहां औलाद के दर्द की दवा भी स्वयं को ही बनना पड़ता है। इसको कोई नहीं समझ सकता कि मां-बाप की कमी क्या होती है। उम्र चाहे बचपन से पचपन में आ गई हो लेकिन मन आज भी उम्र के उसी तहखाने में कैद है जहां बचपन का अल्हड़पन था। जहां मां के आंचल की छांव, तो पिता के मजबूत कंधे और उनकी तर्जनी का सहारा था।

आने वाली पीढ़ी को यही सन्देश देना चाहता हूं कि अपने माता-पिता के प्यार और आशीष को जितना बटोर सको बटोर लो। ये जीवन का वो अनमोल खजाना है जो फिर कभी नहीं मिलेगा। इसलिए उनसे अटूट प्रेम करो। उनकी परछाई बन जाओ। माना कि यह भौतिक युग है लेकिन प्यार के रसायन को इतना बिखेर दो की वो अपने आपको कभी अकेले न समझे। कल वो रहे न रहे लेकिन उनकी स्मृतियां तमाम उम्र आपकी पलको को भिगोती रहे। ‘यादे’ एक ऐसी वेदना का नाम है जो सुख भी देती है और अश्रु भी। यह एक ऐसा आत्म-सुख है जो कहीं मोल नहीं मिलता। बाद उनके, उनकी याद हर पल आती हैं बस वो ही नहीं आते। वो अपने गंतव्य को पा जाए लेकिन तमाम उम्र उनका साथ बना रहे और यह कहानी  पीढ़ी-दर-पीढ़ी यूं ही चलती रहे। शायद यही प्रेम का सागर है जो डूब गया समझो किनारा पा गया।