446 वीं हल्दीघाटी युद्धतिथि पर शहीदों को दीपांजलि व स्वरांजलि का होगा आयोजन

खमनोर । प्रभु श्री राम के वंशज,भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी वीर शिरोमणी, प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप द्वारा मातृभूमि की आन,बान एवं शान की रक्षार्थ 18 जून 1576 को आम जन के सहयोग से लड़े गए हल्दीघाटी के जनयुद्ध में सभी जाति धर्म के कई देश भक्त शहीद हुए थे।
शौर्य एवं वीरता दिवस के रुप में हल्दीघाटी पर्यटन समिति द्वारा प्रतिवर्ष युद्ध तिथि पर दीपांजलि अर्पित कर हल्दीघाटी रणक्षेत्र में युद्ध दिवस के आयोजन में भव्यता देने का नवाचार अपनाया व क्षेत्र के युवाओं को इस समारोह से जोड़ने का प्रयास आरम्भ किया। ग्राम पंचायत खमनोर द्वारा युद्धतिथि समारोह को प्रतिवर्ष भव्यता से मनाते हुए स्थानीय आयोजन के रूप में स्वीकृति मिलना क्षेत्रवासियों के लिए हर्ष का विषय है।


इस वर्ष युद्धतिथि पर प्रायोजक ग्राम पंचायत खमनोर एवं आयोजक हल्दीघाटी पर्यटन समिति के सानिध्य में 18 जून को सायंकाल खमनोर गांव स्थित हल्दीघाटी के मुख्य युद्धस्थल रक्त तलाई में दीपांजलि समारोह व विनोद दाजी बजरंग सत्संग मंडल द्वारा स्वरांजलि समारोह आयोजित किया जा रहा है। आमजन द्वारा युद्ध तिथि के महत्व को समझते हुए शहीदों की स्मृति में होने वाले दीपांजलि के आयोजन के प्रति खासा उत्साह है।

-ः हल्दीघाटी का जनयुद्ध एक नजर  :-
मघ्य कालीन भारत के इतिहास में स्वतन्त्रता के लिए लड़ने वाले अनेक महापुरूष हुए लेकिन महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरू गोविन्द सिंह के नाम उनमें अग्रणी हैं। राणा प्रताप के लिए स्वातन्त्रय धर्म था और उनके जीवन की यह टेक थी – ‘ जो ढृढ़ राखे धर्म को,तिही राखे करतार ’ – और इस टेक की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के संकल्प को उन्होंने भीषण परिस्थितियों में जिस दृढ़ता से निर्वाह किया उसने सारे भारत देश को अनुप्राणित किया। वे राजकुल में उत्पन्न हुए थे और उनके सामने अकबर और अपने ही भाई राजपूतों से अपनी स्वतन्त्रता बनाए रखनी की समस्या थी। उन्होंने अपने राजपूत अनुयायियों में ही नहीं अपने राज्य के आदिवासी भीलों में भी स्वतन्त्रता प्रेम की ऐसी अग्नि प्रज्वलित कर दी कि वे अपने समय के संसार के सबसे शक्तिशाली सम्राट अकबर से आजीवन लोहा ले सके । कर्नल टॉड ने उनके इस आजीवन युद्ध का जो वर्णन किया है वह उनकी महानता का परिचय देता है ।

हल्दीघाटी दर्रा