राजस्थान पुलिस के एएसआई मीणा, जिनकी बदौलत आज दर्जनों घरों के चिराग सुरक्षित

यूनिसेफ इंडिया का बस एक ट्वीट, और गुमनाम लेकिन बेहद सुलझा हुआ एक व्यक्तित्व सुर्खियों में आ गया। हम बात कर रहे हैं राजसमंद जिले के राजनगर थाने में पोस्टेड एएसआई ओमप्रकाश मीणा की। जैसा नाम, वैसा काम। एएसआई ओमप्रकाश मीणा अनेकों बच्चों के जीवन के अपराध और तनाव के अंधकार में प्रकाश की एक किरण के रूप में खड़े दिखाई देते हैं। अक्सर पुलिस अधिकारियों के बारे में, चाहे वे किसी भी रैंक पर हों, कहा जाता है कि वे शिकायत पर कार्यवाही करने में आनाकानी करते हैं, या किसी व्यक्ति के राजनीतिक रसूख के आगे बेबस हो जाते हैं, इन सब के बीच ओमप्रकाश मीणा का नाम लोगों की जुबान पर है। कारण है समर्पण और कर्तव्य निष्ठा से परिपूर्ण उनकी ड्यूटी।

दरअसल पिछले दिनों एक नाबालिग घर से इसलिए गायब हो गया क्योंकि उसे पढ़ने में रुचि नहीं थी। पढ़ाई से मन ऊब गया तो घर छोड़ने का मन बना लिया। बच्चे के माँ-बाप किसी अनहोनी की आशंका को आंखो में लिए बच्चे को ढूँढने में लगे। बच्चा सुरक्षित मिला लेकिन तनाव ने उसको घेर रखा था, अब चुनौती ये थी कि उस बच्चे को इस स्थिति से बाहर कैसे निकाला जाए, और इस चक्रव्युह को भेदा एएसआई ओमप्रकाश मीणा ने। एएसआई ने बच्चे को समझाने और पढ़ाई के प्रति रुचि जगाने में अहम भूमिका निभाई। अब ये केवल एक ऐसा केस नहीं है, एएसआई मीणा ऐसे ही करीब अढ़ाई दर्जन बच्चों का भविष्य निखारने में हीरो का किरदार निभा रहे हैं। यूनिसेफ के कार्यक्रमों के तहत बाल कल्याण अधिकारी के रूप में कार्यरत एएसआई ओमप्रकाश मीणा दो साल से अनेकों बच्चों को सही दिशा में ला चुके हैं। राजनगर थाने में बतौर बाल कल्याण अधिकारी के रूप कार्य करते हुये एएसआई मीणा नाबालिग गुमशुदा, अपहृत, बाल श्रमिक, सड़क पर भीख मांगने वाले बच्चों से मिलकर, उनसे समझाइश करके समाज की मुख्य धारा से जोड़ रहे हैं। राजनगर क्षेत्र की कि 15 वर्षीय बालिका घर से गायब हो गई, पुलिस की त्वरित कारवाई की बदौलत लड़की 48 घंटे में माता-पिता को सुपुर्द कर दी गई। इसके अलावा और भी अनेकों केस हैं जिनमें एएसआई मीणा एक हीरो बनकर सामने आते हैं। एएसआई मीणा ऐसे बच्चों की काउंसलिंग करते हैं, और सही दिशा में लाने का प्रयास करते हैं। एएसआई मीणा जानकारी देते हुये कहते हैं कि नाबालिग के किसी केस में लिप्त होने की स्थिति में हम उसके साथ आम अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं करते हैं बल्कि सामान्य कारवाई करते हैं। इस दौरान बालक की मानसिक स्थिति का बुरा ध्यान रखा जाता है ताकि बालक डरे न और उसके मन पर कोई बुरा असर न पड़े। बच्चे को न ही गिरफ्तार किया जाता है और न ही हवालात या थाने में रखा जाता है, इसके उलट बच्चे को बाल कक्ष में रखा जाता है, पूछताछ हो तो भी सादे कपड़ों में ही उसके सामने जाते हैं। बच्चे की सुरक्षा और अन्य जरूरतों का पूरा ध्यान रखा जाता है। एएसआई मीणा बताते हैं कि अब तक वे 30 बच्चों को डिटेन कर चुकें हैं, इन बच्चों को सही सलामत इनके घर पहुंचाया और सही राह दिखाई। इन बच्चों में घर से भागे हुये, अपहरण किए गए, या बाल श्रमिक भी होते हैं। पूरी प्रक्रिया के दौरान बच्चों को ये एहसास नहीं होने दिया जाता है कि उनके साथ कोई कानूनी कारवाई हो रही है। तमाम प्रकार की व्यवस्थाओं के चलते ही बच्चे सहज रहते हैं और बुरे वक्त से बाहर आ जाते हैं।

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एएसआई मीणा से जब बाल कल्याण अधिकारी के रूप में कार्य करने के अनुभव के बारे में पूछा जाता है वे कहते हैं कि बालक हमारे समाज तथा देश का भविष्य है। यदि उन्हे सही समय पर उचित मार्गदर्शन मिल जाए तो उनका पूरा जीवन बदल सकता है। इसलिए ऐसे बच्चों को समाज की मुख्य धारा में जोड़ना बेहद आवश्यक और महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है। वे इस पूरे अभियान में आने वाली चुनौतियाँ के बारे में भी बताते हैं, वे कहते हैं कि पुलिस के समक्ष सामान्य अपराधों की जांच व रोकथान के साथ ही कानून व्यवस्था के कार्यों की व्यस्तता होती है, और स्टाफ की कमी भी होती है, समय की कमी और देखभाल व संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों को दूर से जिला मुख्यालय तक लाने-लेजाने में परिवहन, जागरूकता की कमी आदि मुख्य समस्याएँ आती हैं। प्रेरणा स्त्रोत के बारे में एएसआई कहते हैं कि जिले में समय समय पर चलाये जा रहे अभियान और बालकों को अपराध के दलदल में धँसने से रोकने की इच्छा ही उन्हे इस तरफ प्रेरित करती है। एएसआई मीणा इस कार्य को करने में गर्व महसूस करते हैं और बालकों के साथ समय बिताना उन्हे पसंद है।

व्यक्तिगत जानकारी साझा करते हुये एएसआई मीणा बताते हैं कि भीलवाडा जिले के गाँव लक्ष्मीपुरा में जन्म हुआ, गाँव में विद्यालय ना होने के कारण प्रारम्भिक शिक्षा के लिए भी गाँव से 3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। माणिक्य लाल वर्मा राजकीय महाविद्यालय भीलवाडा से स्नातक तक पढ़ाई की और 10 अक्टूबर 2001 को बतौर कॉन्स्टेबल राजस्थान पुलिस में भर्ती हुए। 2016 में हेड कॉन्स्टेबल और फिर 2019 में सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) के पद पर पदोन्नति हुई। अपनी कर्तव्य निष्ठा और सेवा के समर्पण भाव के कारण एएसआई मीणा आज न सिर्फ जिले में बल्कि पूरे प्रदेश में सुर्खियां बटोर रहे हैं। आज हमारे देश को ऐसे ही अधिकारियों की आवश्यकता है जो पोस्ट और रसूख से ऊपर उठकर समाज के लिए आगे आयें। एएसआई मीणा ने आज अपने समाज, प्रदेश, और देश को गौरवान्वित किया है।

 

 

लेखक : तनवीर सिंह सन्धू
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी, विरासत संरक्षण एवं जीर्णोद्धार समिति