राजनीतिक दलों की नूरा कुश्ती है ‘आरोप-प्रत्यारोप’- मधुप्रकाश लड्ढा

 राजसमन्द। राजनीतिक दलों की आपस में नूरा कुश्ती खेलने की आदत दशकों पुरानी है। और कोरोना काल में भी यही सब देखने को मिल रहा है। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, कटाक्ष, व्यंग्य, तंज, आड़े हाथों लेना, सीधे हाथों लेना…. पता नहीं कौन-कौनसी अदाएं हैं, जो रंगमंच के कलाकारों की तरह दिखाते रहते हैं। मुझे लगता है इस कठिन समय में जनता का ध्यान ‘डायवर्ट’ करने के लिए ऐसा करते होंगे, ताकि गम्भीर बीमारी में भी रोगी का मनोरंजन हो सके।

लॉकडाउन, वेक्सिनेशन, आक्सीजन बेड, आईसीयू , वेंटिलेटर, एम्बुलेंस, रेमडेसिवीर, डॉक्टर, स्टॉफ की कमी आदि आदि जैसी खबरों को सुन सुन कर बीमार और आम जनता भी बोर हो गई होगी, शायद इसीलिए राजनीतिक रंगमंच की अदाएं मीडिया को माध्यम बनाकर जनता को परोसी जा रही है। राज्य के नेताओं ने केंद्र पर आरोप लगाए तो केंद्र के नेताओं ने आरोपों को नकारते हुए राज्य सरकार पर नए आरोप जड़ दिए…. वाह क्या नूरा कुश्ती चल रही है, कमोबेश यही स्थिति गावँ की इकाई से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक हो रही है। वरना सरकार बदलते ही सही-गलत के पैमाने नहीं बदलते।

महान राष्ट्र के महान कर्णधारों एक दूसरे पर आरोप ही लगाओगे या कुछ समाधान भी करोगे। राष्ट्रीय और वैश्विक महामारी के इस दौर में क्या सबकी सहानुभूति मर्मांत हो गई है ? चुनाव में जुलूस बहुत निकाले अब जनाजों की बारी है, थोड़ा संवेदनशील हो जाइए। कुछ पाने के लिए आपने, बहुत कुछ खो दिया इसका शायद गुमान तक नहीं है !
मां बहिन पिता भाई बेटा चाचा दोस्त और वो अपने… जो हरदम किसी न किसी की धड़कनों में धड़कते रहते थे, आज चिर निंद्रा में सो गए हैं। जिसके सिर से पिता का साया उजड़ा या जिस मां की कोख सुनी हुई है न उससे पूछिये की कोरोना उसके कलेजे से क्या छीन कर ले गया है। उन परिवारों की खेर खबर लीजिए जो अवसाद की स्थिति में है।

आप लोग क्यों नहीं एक समूह में बैठ कर ध्वनिमत से सामूहिक फैसले ले लेते, जैसा विधानसभा में विधायक मद या खर्च बढाने के लिए लेते हैं। एक दूसरे की टांग खिंचाई में क्यों बिचारी जनता का दलिया बना रहे हो। इतना बारीक कातने की आवश्यकता भी नहीं है कि धागा ही अदृश्य हो जाए। ये जनता नहीं रहेगी तो वोट किससे मांगोगे ? राज किस पर करोगे ? इसलिए बेचारी इस जनता पर मेहरबानी कीजिये ताकि आने वाले चुनाव में फिर आपकी गुलामी कर सके, फिर आपको वोट दे सके। कम से कम उस लायक तो छोड़िए!!

आप क्या समझते हैं ! यह पावर और पैसा.. सब कुछ आपका ही है ? ‘कुछ भी स्थायी नहीं है’ यह जितना जल्दी समझ लोगे उतना ज्यादा अच्छा है। शरीर में रहने वाली आत्मा भी अपनी नहीं है, यह जो मुंह से ऑक्सीजन लेकर कार्बन-डाइ-ऑक्साइड छोड़ रहे हो न, यह भी अपने हाथ में नहीं है। अगर होती तो कब का राम नाम सत्य हो गया होता। फिर घमंड किस बात पर करते हो ? अभी भी मौका है, नर को नारायण समझ कर सेवा के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर दीजिए। यह सेवा, आपके सौ गुनाहों पर पर्दा डाल सकती है।

आलेख-विचार व्यक्तिगत है, जो जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सम्पादित किया गया है। ✍️मधुप्रकाश लड्ढा, राजसमन्द