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अरावली की पर्वतमालाओं में स्थित 50एमसीएफटी भराव क्षमता वाला यह तालाब अपन अस्तित्व को बचाने हेतु लम्बे समय से संघर्ष कर रहा है। बीस हजार की आबादी को वर्ष पर्यन्त पेयजल उपलब्ध कराने की क्षमता वाले इस तालाब की पाल मरम्मत को लेकर प्रशासन गम्भीर नहीं है। खमनोर कस्बें से मात्र एक किलामीटर दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित इस तालाब के निर्माण की कोई पुख्ता जानकारी नहीं हैं, लेकिन स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार इसका निर्माण करीब 50 साल पूर्व किया गया है व नामांकरण महाराणा प्रताप के हमशक्ल झाला मान के कारण हुआ है। सरकारी उपेक्षा का दशं झेल रहे तालाब की पाल मरम्मत हेतु वर्तमान विधायक एवं तत्कालिन जिला परिषद सदस्य के रुप में कल्याण सिहं चैहान द्वारा 4 लाख का खर्च कर प्रयास अवश्य किये गये, लेकिन यह प्रयास विफल रहे व आज भी तालाब की पाल फूटी है।
सन 1974 के वर्षा काल में यह तालाब पानी से लबरेज था। ग्रामीण इससे अनभिज्ञ थे कि यह तालाब पूरा भर चुका है। अचानक जोरदार आवाज के साथ पाल को तोडकर पानी खमनोर सहित आसपास बस्तियों में जा घुसा था। कालान्तर में पाल की मरम्मत कर इसका पुनरुद्धार कराया गया। क्षेत्र में स्थाई पेयजल के इन्तजाम हेतु इसका निर्माण कराया जाकर, निरन्तर पानी की आवक बनाये रखने हेतु डाबून भीलवाडा बनास कि किनारे पम्प से नहर द्वारा इसे वर्षभर भरा रखने के प्रयास भी किये गये, लेकिन साफ-सफाई एवं संरक्षण के पूर्ण अभाव में यह तालाब नई पीढ़ी के लोगों के लिये अनजानी कहानी बन कर रह गया है। नह
र भी जगह- जगह से क्षतिग्रस्त हो अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है। तालाब के किनारें होकर जाने वाले मार्ग की हालत भी दयनीय हो गई है। अकाल राहत, मनरेगा सहित विभिन्न मदों में तालाब एवं मार्ग संरक्षण के प्रस्ताव भी लिये गये लेकिन हालात जस के तस है। राजसमन्द झील तक पानी पहुॅचाने को लेकर विगत दिनों देवास चतुर्थ योजना के सर्वे से आस जागी थी, वह भी पुनः ठण्डें बस्ते में चली गई ।
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हल्दीघाटी पर्यटन समिति द्वारा विगत वर्षों में कई मर्तबा विकास अधिकारी को ग्रामीणों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन देकर इसके संरक्षण की मांग दोहराई जा चुकी है। जिला प्रशासन द्वारा भी इसके संरक्षण के मौखिक आदेश पर भेजे गये प्रस्तावों पर वर्तमान तक कोई ठोस कार्रवाई का न होना क्षेत्र के कृषकों के लिये पहेली बना हुआ है। राजस्थान सरकार द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना का लाभ खमनोर तहसील की जनता को नहीं मिल पा रहा है। यदि समय रहते ’ माना तालाब’ का सरंक्षण होता है तो स्थानीय पेयजल की समस्या से राहत मिल सकती है।
ज्ञात रहे कि खमनोर तहसील की पेयजल योजना का पम्प स्टेशन होते हुए भी यहाॅ की धैर्यवान जनता विगत एक दशक से पांतरे पेयजल व्यवस्था से जूझ रही है। अब देखना यह है कि सरकार के कार्यकाल को तीन साल गुजर गये है, शेष समय दो साल में भी यह संरक्षित हो पाता है तो अवश्य उपलब्धि हासिल हो सकती हैं।