विश्वास स्वरूपम महज एक स्टेच्यू नहीं, बल्कि एक अनुसंधान है – मुरारी बापू


नाथद्वारा@राजसमन्द टाइम्स। ‘‘भवानी शंकरौ वन्दे, श्रद्धा विश्वास रुपिणौ, याभ्यां बिना न पश्यन्ति, सिद्धाः स्वन्तस्थमीश्वरं। वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणं, यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वंद्यते।।’’

विश्वास स्वरूपम महज एक स्टेच्यू नहीं, बल्कि एक अनुसंधान है। इसका अनुसंधान करने से जीव का अनुसंधान हो जाएगा। और अनुसंधान का मूल आधार विश्वास है।

शीतल संत मुरारी बापू ने यहां नाथद्वारा में विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा विश्वास स्वरूपम के विश्वार्पण के साथ शुरू हुई रामकथा के चौथे दिन मंगलवार को यह बात कही। उन्होंने विश्वास स्वरूपम को विस्तारित करते हुए कहा कि विश्वास स्वरूपम का दायां चरण परम पद है जो भरोसा देता है। बुद्ध पुरुष के पास बैठना अपने आप में अन्तर्यात्रा को प्रारंभ कर देता है। बायां चरण चरम पद है। यह विश्राम मुद्रा में थोड़ा ऊपर उठा हुआ है। वाम भाग हृदय होता है। महादेव का बायां हाथ अभय का संकेत करता है और दायां हाथ वरद है। गले में जो सर्प है वह मृत्यु का भय दूर करता है। हाथ में जो त्रिशूल है वह शस्त्र नहीं शास्त्र है जो तीनों लोक के तीनों ताप को मिटाता है। शिव की दाहिनी आंख सत्य है, बायीं आंख करुणा है और तीसरी आंख प्रेम है।

बापू ने भक्तिमती मीरा का पद ‘‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा ना कोई’’ सुनाते हुए प्रेम की गहराई की व्याख्या की। बापू ने कहा कि प्रेम निगरानी नहीं, बल्कि चिन्ता रखता है। प्रेम के मूल में भी विश्वास है। श्रीकृष्ण की भक्ति में भी प्रेम छिपा है। प्रेम सर्वस्व अर्पण की भावना है, कुछ पाने की आकांक्षा जहां होती है वहां प्रेम नहीं होता। बापू ने कहा कि यह सुअवसर है कि यहां श्रीनाथजी और विश्वास स्वरूप की महफिल सजी है। जहां प्रेम है वहीं विश्वास है। प्रेम और विश्वास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।

‘‘काक चेष्टा, बको ध्यानं’’ श्लोक को उद्धृत करते हुए बापू ने समझाया कि यहां बगुले की तरह ध्यान की बात कही गई किन्तु यह भी समझना चाहिए कि वह ध्यान किसके लिए लगा रहा है। वह ध्यान मछली पकड़ने के लिए लगा रहा है, मछली को फांसना उसकी प्रवृत्ति है, किन्तु हमारा ध्यान हमारे सद्लक्ष्य की ओर होना चाहिए। बापू ने प्रलोभनी सलाह से बचने का मंत्र देते हुए कहा कि सुमंत्र और कुमंत्र दोनों होते हैं। मंत्र का अर्थ विचार से होता है। जहां सुमंत्र हो, अच्छा विचार हो उसकी ही सलाह लेनी चाहिए। कुमंत्री एवं प्रलोभनी सलाह से हमें हमेशा बचना चाहिए। कुमंत्र से हम पथभ्रमित हो सकते हैं, हिंसक भी हो सकते हैं।

मुरारी बापू ने कहा कि मानव जीवन में अन्तर्यात्रा और बहिर्यात्रा दो प्रकार की यात्रा होती है। किसी भी बुद्ध पुरुष के पास बैठना एक अन्तर्यात्रा है। यह मन को निर्मलता प्रदान करती है। बापू ने कहा कि भाव के बिना हमें शांति मिल ही नहीं सकती है। जब मधुमक्खियां एकत्रित होती हैं तो मधु एकत्र होता है। जबकि, हम दो मनुष्य एकत्र होते हैं तो मन का विष पैदा करते हैं। मन के इसी विष को समाप्त करने के लिए कथा की आवश्यकता होती है। बापू ने कहा कि मन में शुद्धि का भाव है, इसलिए हम एकत्र हुए हैं और भाव के कारण ही हम शांत भी हैं।

साधु का मतलब विश्वास

उन्होंने बताया कि हर वस्तु शब्दकोश में नहीं होती है, बल्कि कोई कोई हृदय कोश में भी होती है। हृदय कोश में साधु का मतलब विश्वास होता है। साधु और विश्वास एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। विश्वास अवर्णनीय होता है और इसी तरह साधु का भी कोई वर्णन नहीं है। साधु वर्ण से परे है क्योंकि वह शिव समान है। मानस में कई जनों को साधु बोला गया है। सेतु बनाना साधु का लक्षण है। साधु समन्वय करता है। विश्वास के साथ समाज को जोड़ने का काम साधु करता है। जिसको एकांत प्रिय हो वह साधु होता है। मौन रहना साधु का लक्षण है। आंख से क्या देखना और क्या नहीं देखना चाहिए, उसका विवेक से सम्यक करना साधु का गुण है। साधु रसेन्द्रिय को विवेक के साथ नियंत्रित करता है। विश्वास में सहन बहुत करना पड़ता है। विश्वास भिखारी नहीं बल्कि भिक्षुक होता है। साधु सबकी सेवा करता है, लेकिन स्मरण केवल हरि का करता है। साधु प्रमादी नहीं होता है, बल्कि वह श्रम करता है, तपस्वी होता है।

भक्ति वर्धन करने के दो सूत्र

मुरारी बापू ने कहा कि भक्ति को वर्धन करने के दो सूत्र बताए गए हैं। पहला सूत्र है त्याग करो, सबके बीच रहो, ममता भी रखो, लेकिन ममता के धागे की रस्सी बनाकर ठाकुरजी के चरणों में ले जाओ। भक्ति वर्धन करने का दूसरा सूत्र श्रवण कीर्तन है। भजन करो, भजन सुनो, ईश स्मरण में मन को रमाओ।

मेलास्थल बन गई है श्रीनाथजी की समूची नगरी

श्रीनाथजी की समूची नगरी मानो मेला स्थल बन गई है। दिन उगते ही गणेश टेकरी की ओर हजारों कदम बढ़ते हैं। रात्रि को लौटते समय भी यही स्थिति होती है। हजारों की संख्या में लोगों की आवाजाही के कारण मार्ग के किनारे अस्थायी स्टाल्स की कतार भी लग गई हैं जहां कथा श्रवण को आने-जाने वाले श्रोता खरीदारी करते नजर आ रहे हैं। ऐसा दृश्य है मानो रोज दीपावली का उत्सव है।

कथा के दौरान आयोजक संत कृपा सनातन संस्थान के ट्रस्टी मदन पालीवाल, मंत्रराज पालीवाल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी, राजस्थान के पूर्व मंत्री यूनुस खान, रवीन्द्र जोशी, रूपेश व्यास, विकास पुरोहित, विष्णु दत्त, प्रकाश पुरोहित, जिला कलेक्टर निलाभ सक्सेना, जिला पुलिस अधीक्षक सहित कई गणमान्य मौजूद रहे।

कल से संध्या में बिखरेंगे सांस्कृतिक रंग

‘‘विश्वास् स्वरूपम’’ अनावरण एवं रामकथा महोत्सव में 2 नवम्बर से सुबह भक्ति के साथ कर शाम को सांस्कृतिक झलक भी देखने को मिलेगी।सांस्कृतिक सरिता में 2 नवम्बर शाम को गुजराती कॉमेडी नाटकों के किंग सिद्धार्थ रांडेरिया अपनी प्रस्तुति देंगे। सिद्धार्थ रांडेरिया अभिनेता के रूप में सबसे अधिक लाईव प्रदर्शन का रेकार्ड बना चुके हैं। 3 नवम्बर शाम को रॉक अंदाज में भक्ति गीतों का जादू बिखेरकर दर्शकों को झूमने पर विवश करने वाले बाबा हंसराज रघुवंशी अपनी प्रस्तुति से शिव भक्ति करेंगे। वर्ष 2019 में ‘‘मेरा भोला है भण्डारी’’ भजन ने रघुवंशी को बतौर गायक स्थापित किया। बाबा हंसराज ने गायन की अपनी अलग ही शैली विकसित की है। 4 नवम्बर शाम को देश के ख्यातनाम कवि कुमार विश्वास, बुद्धिप्रकाश, जानी बैरागी सहित अन्य ख्यातनाम कवि काव्याधारा से विश्वास स्वरूपम का अभिषेक करेंगे। 5 नवम्बर शाम को भारतीय पॉप रॉक गायक कैलाश खेर अपनी सुर लहरियां बिखेरेंगे।