हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक की दुर्दशा पर जिम्मेदार हुए मौन !!





विकास के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की उच्च स्तरीय जाँच एजेंसी से जांच कराने की मांग

राजसमंद । राजसमंद जिला प्रशासन को धोखे में रख राष्ट्रीय स्मारक हल्दीघाटी व चेतक स्मारक के नजदीक सड़क पर बलीचा में घोड़े की मूर्ति लगाने के नाम पर सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने व कथित संग्रहालय नाम की दुकान के आगे आ रही पहाड़ी नष्ट करने की साजिश का मामला प्रकाश में आया हैं। पूर्व में सन २००७ की बैठकों में चेतक नाले पर बने व्यू पॉइंट पर घोड़े की मूर्ति लगाने की योजना थी।
जानकारी के अनुसार यह सोची समझी साजिश के तहत घोड़े का एकदिवसीय मेला कराने की आड़ में बेशकीमती भूमि पर अतिक्रमण का मामला है जिस पर प्रशासनिक सवा तीन लाख की अलग से स्वीकृति संदेह को गहरा करती है। उनवास ग्राम पंचायत के जनसेवकों का कहना है कि जिला प्रशासन को इसकी पूर्व में लिखित सूचना देकर किसी भी प्रकार के आवंटन पर रोक लगाने की मांग की गई थी। आराजी संख्या 924 चरागाह को बिलानाम करा कर पूर्व में भी इसी तरह अतिक्रमण कर ५ बीघा जमीन तो हड़पी जा चुकी है अब शेष रह गई जमीन पर पार्किंग बना कर राजस्व नुकसान सहित ऐतिहासिक प्राकृतिक धरोहर को नब्बे फीसदी नष्ट किया जा चुका है। हालात यह है कि बलीचा निवासी वर्तमान अतिकर्मी सेवानिवृत शिक्षक द्वारा हल्दीघाटी को अपनी निजी दुकान बना कर रख दी गई है। .. रक्त तलाई – शाहीबाग-हल्दीघाटी दर्रा – चेतक समाधी व स्मारक पर्यटकों के अभाव में सूने पड़े रहते व भ्रमित सूचनाओं के आधार पर पर्यटक सीधा बलीचा जाकर उसे ही हल्दीघाटी समझ 100 रुपया खर्च कर भी मूल धरोहरों को देखने से वंचित रह जाता है।



भ्रष्टाचार की भी कोई तो सीमा होगी ? देश के प्रधान सेवक की राष्ट्रभक्ति पर शक नहीं किया जा सकता तो क्या उनके अधीन आ रहे राजसमंद के सभी जन सेवक भी उसी ईमानदारी के साथ महाराणा प्रताप के स्थलों के साथ न्याय कर रहे है ? यह सोचनीय एवं गंभीर विषय है। अब पूंजीवाद के आगे आखिर कब तक नेता व अधिकारी अपनी आँख बंद कर महाराणा प्रताप राष्ट्रीय स्मारक हल्दीघाटी सहित समूची रणभूमि के बदहाल हालात देखते रहेंगे? राष्ट्रीय महत्व के स्मारक का शिलान्यास 1997 में होता है व महाराणा प्रताप की चेतक पर अश्वारूढ़ प्रतिमा २००९ में लगती है ! बावजूद इसके संरक्षण सभी जिम्मेदार अधिकारी व नेता न जाने कौनसी हिस्सेदारी निभाने के फेर में भ्रष्ट अतिकर्मी को सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने व सरकारी संग्रहालय को कागजों में दबा कर निजी दुकान की स्वीकृति दे देते है ? सत्य यह है कि २००७ में चेतक द्वारा लांघे गए ऐतिहासिक नाले पर पर्यटकों के लिए व्यू पॉइंट बनाने व यहाँ पर घोड़े की मूर्ति लगाने का प्रारूप रहा था ! अव्वल अधूरे स्मारक का उद्घाटन किया गया , सिर्फ इतना ही नहीं इसके सं्चालन की जिम्मेदारी जिला कलक्टर के अधीन १९९३ में बने कागजी महाराणा प्रताप स्मृति संस्थान को सौंपी गई। आखिर पूंजीवादी संस्थापक महासचिव श्रीमाली को यह बात कहाँ गले उतरने वाली थी। … उसके द्वारा सरकार को बौना साबित करने के चक्कर में कई हथकंडे अपनाये गए व आज पूरी पहाड़ी का प्राकृतिक स्वरुप ही नष्ट कर दिया गया हैं ! पर्यटकों को भ्रमित करने के लिए सड़कों पर बलीचा में चल रही निजी दुकान को संग्रहालय का नाम देकर देश के बड़े बड़े नेताओं सहित शीर्ष अधिकारियों इस कदर गुमराह किया हुआ कि पर्यटक हल्दीघाटी के नाम पर चल रही निजी दुकान में 100 रूपये देख मेवाड़ के महानायक वीर शिरोमणि महराणा प्रताप का नकली भाला व अन्य सामग्री देख ठगे जा रहे हैं
उदयपुर के पर्यटन विभाग ने तो जैसे समूची हल्दीघाटी पूर्व में आरटीडीसी चलाने वाले अतिकर्मी ठेकेदार को ही ठेके पर दे रखी हो ऐसा बर्ताव कर महाराणा प्रताप का दशकों से अपमान किया है। अब देखना यह है कि, कौनसा देशभक्त जनसेवक इस रणधरा की सुध लेकर भ्रष्ट पूंजीवादी ताकतों को संविधान के अनुसार न्याय दिलायेगा। स्थानीय हल्दीघाटी पर्यटन समिति के संस्थापक कमल मानव ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री , पर्यटन मंत्री सहित प्रदेश की मुख्यमंत्री से हल्दीघाटी के विकास एवं वर्तमान तक विकास के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की जाँच करवाए जाने की सोशल मीडिया पर ट्वीट कर माँग की है।
उल्लेखनीय है कि स्थानीय उपखण्ड स्तरीय सतर्कता समिति में २००७ में भी अतिक्रमण की शिकायत पर अतिकर्मी मोहनलाल श्रीमाली को भविष्य में किसी भी प्रकार का कोई अतिक्रमण नहीं करने को पाबंद कराया गया था।