स्वार्थरहित मित्रता ही अमर रहती है – संत धीरज राम महाराज, संगीतमय भागवत कथा का हवन के साथ समापन

नाथद्वारा। नगर के फौज मोहल्ला स्थित शाहपुरा के रामद्वारा में चल रही सप्त दिवसीय संगीतमय भागवत सप्ताह के सातवें दिन पुष्कर से पधारे हुए अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के संत श्री धीरज रामजी महाराज ने कथा के सातवें और अंतिम दिन उद्धव प्रसंग सुनाते हुए बताया कि उद्धव अपने ज्ञान का बहुत अभिमान करते है क्योंकि वे बृहस्पति के शिष्य थे। भगवान ने उनको प्रेम का पाठ पढ़ाने के लिए वृंदावन गोपियों के समक्ष भेजा और ऐसा गोपियों का रंग लगा कि उद्धव भी गोपियों के समक्ष अपने आप को समर्पित कर देता है और वह भी प्रेम के रंग में ऐसा रंग जाता है कि वही वृंदावन की रज में लोटपोट होने लग जाता है।

संत श्री ने रुक्मणी विवाह का प्रसंग सुनाया और धूमधाम से रुक्मणी विवाह का चित्रण हुआ और सभी भक्तगण नृत्य करने लगे। संत श्री ने सुदामा चरित्र सुनाया और बताया कि सच्ची मित्रता वह होती है जो नि:स्वार्थ भाव की हो स्वार्थ रहित मित्रता ही अमर होती है। उसके बाद संत श्री ने 24 गुरुओं की कथा सुनाई दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाएं और सभी से कुछ न कुछ शिक्षा प्राप्त की। हमारा गुरु वही है जहां से हमें कुछ शिक्षा मिलती हो दीक्षा गुरु एक हो सकता है, शिक्षा गुरु अनेक हो सकते हैं। इस प्रकार से संत श्री ने 7 दिन चली आ रही भागवत सप्ताह को आज रविवार को विश्राम दिया।

रामद्वारा के सेवक एवं पत्रकार गणेश कुमावत ने बताया कि कथा के मनोरथी कृष्णकांत पालीवाल और दया शंकर कुमावत ने कथा के बाद व्यासपीठ का पूजन किया। हवन पश्चात महाप्रसादी का आयोजन भी हुआ।