इतिहास में एक नया अध्याय लिखेगा विश्वास स्वरुपम लोकार्पण महोत्सव, नाथद्वारा में होगा 29 अक्टूबर से 6 नवम्बर तक भव्य आयोजन

अद्वैतम आनंद रूपम अरूपम, इति विश्वास स्वरूपं!!
‘अद्वैतम आनंद रूपम अरूपम,
ब्रह्मोहम ब्रह्मोहम ब्रह्म स्वरूपहम,
चिदोहम चिदोहम सतचिदानंदोहम’

 

“मैं एकल हूं। मुझे किसी दूसरे में मत ढूंढ़ो। मैं ही कल्याणकारी रूप में हूं। मैं ही हूं जिसका कोई रूप भी नहीं है, जिसे आकार दिया जा सके। मैं ही ब्रह्म रूप में हूं।  मैं ही चेतना हूं, मैं ही चेतन स्वरूप हूं। मैं जीवंत हूं। मैं जीवन से भरा हुआ हूं। मैं शुद्ध ऊर्जा और शुद्ध चेतना हूं। मैं निर्मल और कल्याणकारी आत्म रूप हूं। मैं ही सत्य, चित्त और आनंद रूप हूं।”

भगवान शिव यदि रौद्र रूप हैं तो वे निर्मल सच्चिदानंद भी हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने की आराधनाओं में ऐसा वर्णन है जो यह कहती हैं कि उन्हें भजने, उन्हें जपने, उन्हें पूजने आदि की कोई बाध्यकारी पद्धति नहीं है। भक्त जिस रूप में चाहे, उस रूप में उन्हें भजे, जपे, पूजे, कोई जरूरी नहीं कि सामने प्रतिमा हो ही, या प्रतिमा पर कुछ चढ़ाना हो ही। इसी लिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा गया है, वे जल्द प्रसन्न हो जाने वाले माने गए हैं, उनके स्वरूप वर्णन में भी कोई विशेष आभरण नहीं हैं, वे तो वन पुष्पों से ही प्रसन्न हो जाने वालों में से हैं। लेकिन, सत्य और चित्त की अनिवार्यता उनके साथ भी है। आपको उन्हें शुद्ध और पूर्ण समर्पित भाव से भजना होगा, जपना होगा। उन पर अनन्याश्रय रखना होगा, अर्थात् यदि सामान्य शब्दों में कहें तो भोले को भजने के लिए भोले को अपना सखा बनाइये। सबकुछ उसके भरोसे छोड़ दीजिये, हर वक्त उसी पर भरोसा रखिये, सभी समस्याओं को उसके जिम्मे छोड़ दीजिये। शायद भक्ति का यही भाव होता है। यही कारण रहा होगा कि विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा का नामकरण ‘विश्वास स्वरूपम्’ रखा गया है। पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय की प्रधानपीठ प्रभु श्रीनाथजी की नगरी श्रीनाथद्वारा में तत पद्म संस्थान की ओर से स्थापित भगवान शिव की 369 फीट ऊंची प्रतिमा का लोकार्पण 29 अक्टूबर को होने जा रहा है।

फ़ाइल फोटो – शिलान्यास समारोह

इस प्रतिमा का शिलान्यास 18 अगस्त 2012 को हुआ था। संत कृपा सनातन संस्थान के प्रमुख ट्रस्टी मदन पालीवाल इस प्रतिमा के नामकरण पर कहते हैं, शिव को पाना है तो उस पर अनन्य विश्वास रखना होगा, शिव एक अनुभूति हैं, यह आत्मिक आनंद का अनुभव है, जिसे होता है व प्रकट नहीं करता या प्रकट करने जैसा उसके पास कुछ नहीं होता।

प्रतिमा को उत्सव मूर्ति का रूप बताते हुए वे कहते हैं कि शिव के सौम्य और निर्मल-आनंद स्वरूप की यह छवि दूर से ही चित्त को हर लेती है। कई किलोमीटर दूरी से ही जब इसकी छवि के दर्शन होने लगते हैं तब शिव के प्रति भक्ति का भाव उत्पन्न होने लगता है। भगवान की मूरत के दर्शन से ही व्यक्ति का चित्त उसमें खो जाए, इसे उस परमशक्ति की उपस्थिति का आभास ही माना जाना चाहिए। उत्सव मूर्ति के पीछे यह भी कहा जा सकता है कि मंदिर और पूजन की शास्त्रोक्त परम्पराओं का निर्वहन इस तरह के प्रकल्प में कठिन प्रायः होता है, किन्तु भावनाओं का प्रकटीकरण उत्सव मूर्ति के समक्ष भी संभव हो सकता है, क्योंकि भारतवर्ष में ‘कंकर कंकर में शंकर’ माना गया है।

भगवान श्रीकृष्ण की नगरी श्रीनाथद्वारा में स्थापित यह शिव मूर्ति श्रीकृष्ण और शिव की सम्बद्धता को भी स्थापित करती है। कथाओं में वर्णन है कि शिशु स्वरूप लालन के दर्शन को भगवान शिव कितने आतुर हुए थे और किस तरह भेष बदलकर नंदगांव पहुंचे और अनुनय-विनय के उपरांत वे भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के शिशु स्वरूप से साक्षात् हो सके। अनुभूति की जा सकती है कि जब शिव को लालन के दर्शन हुए होंगे, उस आनंदित कर देने वाले क्षण में उनके मुख पर कैसी मुस्कान रही होगी, श्रीनाथद्वारा में स्थापित प्रतिमा की मुस्कान को उस अनुभूति की छवि कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, और यहां बिराजे शिव निरंतर श्रीनाथजी के मंदिर की ओर ही निहार रहे हैं।

केवल इतना ही नहीं, ‘विश्वास स्वरूपम्’ का यह ऐतिहासिक लोकार्पण भक्ति की त्रिवेणी के संगम का भी साक्षी बनने जा रहा है। एक ओर श्रीनाथजी बिराजित हैं और दूसरी ओर उन्हें भगवान शिव निहार रहे हैं, जिस वक्त लोकार्पण होगा, तब श्रीनाथद्वारा की धरा पर श्रीराम की महिमा गूंज रही होगी। संत कृपा सनातन संस्थान के तत्वावधान में संत मुरारी बापू ‘राम कथा’ के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के स्वरूप की शाब्दिक अनुभूति कराएंगे। श्रीकृष्ण शरणं ममः, मंगल भवन अमंगल हारी और ओम नमः शिवाय के सुरों का यह अनूठा संगम भूतो न भविष्यति जैसा कहा जाए तो इसे अतिशयोक्ति नहीं माना जाना चाहिए।

दीपावली पूर्व रोशनी से नहाया हुआ नगर का मुख्य द्वार

जब इस समारोह के पूर्व में ही ऐसा दृश्य अनुभव में आ रहा है तो मान सकते हैं कि इसके साक्षात् दर्शन का कौन साक्षी नहीं बनना चाहेगा। भक्ति और अध्यात्म की इस गंगा में डुबकी लगाने के लिए पूरा नाथद्वारा तो सज ही रहा है, इससे अधिक नाथद्वारा बाहर से आने वाले मेहमानों के स्वागत की तैयारी भी कर रहा है। शिव प्रतिमा के लोकार्पण के साथ राम कथा और राम कथा के दौरान विभिन्न कलाकारों की भक्ति संध्या भी होगी।